धर्म एवं दर्शन >> श्रीमद् एकनाथी भागवत श्रीमद् एकनाथी भागवतएन. वी. सपरा (रूपान्तरण)
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श्रीमद् एकनाथी भागवत
वेदों में जो नहीं कहा गया गीता ने पूरा किया। गीता की कमी की आपूर्ति ‘ज्ञानेश्वरी’ ने की। उसी प्रकार ‘ज्ञानेश्वरी’ की कमी को एकनाथी भागवत ने पूरा किया। दत्तात्रेय भगवान के आदेश से सन् 1573 में एकनाथ महाराज ने भागवत के ग्यारहवे स्कंध पर विस्तृत और प्रौढ़ टीका लिखी। यदि ज्ञानेश्वरी श्रीमद्भागवत की भावार्थ टीका है तो नाथ भागवत श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कंध पर सर्वांगपूर्ण टीका है। इसकी रचना पैठण में शुरु हुई और समापन वाराणसी में हुआ। विद्वानों का मत है कि यदि ज्ञानेश्वरी को ठीक तरह से समझना है तो एकनाथी भागवत के अनेक पारायण करने चाहिये। तुकाराम महाराज ने भण्डारा पर्वत पर बैठकर एकनाथी भागवत के सहस्र पारायण किये।
पैठण में आरम्भ एकनाथी भागवत् मुक्तिक्षेत्र वाराणसी में मणिकर्णका महातट पर पंचमुद्रा नामक पीठ में कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पूर्ण हुई। इस ग्रन्थ में भागवत धर्म की परम्परा, स्वरूप, विशेषताएँ, ध्येय, साधन आदि भागवत के आधार पर निरूपित हुआ है।
पैठण में आरम्भ एकनाथी भागवत् मुक्तिक्षेत्र वाराणसी में मणिकर्णका महातट पर पंचमुद्रा नामक पीठ में कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पूर्ण हुई। इस ग्रन्थ में भागवत धर्म की परम्परा, स्वरूप, विशेषताएँ, ध्येय, साधन आदि भागवत के आधार पर निरूपित हुआ है।
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